गुरुवार, 29 अगस्त 2013

राजनीति के हम्माम में

ऐसा लगता है कि राजनीति वह हमाम है जिसमें सभी नंगे होते है । वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था को बदलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी भी उसी रोग से ग्रस्त हुई जिससे अन्य पार्टियाँ है । सीमापुरी की उम्मीदवार संतोष कोली निष्चय ही एक योग्य उम्मीदवार थी और उनकी असामयिक मृत्यु उनके परिवार के लिए किसी त्रासदी से कम नही है, साथ ही हमारे समाज और आम आदमी पार्टी के लिए एक अपूरणीय क्षति है । शोक के इस घड़ी में आम आदमी पार्टी ने उनके परिवार के साथ जो अपनापन दिखाया वह निश्चय ही प्रशंसनीय है । किन्तु उनके भाई को अपना उम्मीदवार बनाकर पार्टी जिस प्रकार की अनुकंपा उनपर कर रही है क्या वह परिवारवाद की दिशा में पहला कदम नही है ? पार्टी के पास उम्मीदवारों की जो फाईनल लिस्ट थी क्या उसमें उनका नाम पहले से था ? अगर नही तो यह उम्मीदवारी पारिवारिक संपत्ति तो है नही जो हस्तांतरित कर दी जाए साथ ही अगर निर्णय का आधार सहानुभूति मत प्राप्त कर जीत हासिल करने का हो तो क्या यह गलत नही है ? आज तक भारतीय लोकतंत्र को जाति, धर्म, परिवार के प्रति सहानुभूति के आधार पर मत प्राप्त करके ही तो ठगा गया है । अगर राजनीति का यही पैमाना है तो राहुल बाबा तो प्रधानमंत्री के सबसे योग्य उम्मीदवार है । उनकी दो पीढीयां राजनैतिक हत्या की शिकार हो चुकी हैं । ज्योतिरादित्य , जतिन पाईलट , जगन रेड्डी, उद्धव ठाकरे जैसे तमाम उत्तराधिकारियों को भी आपको सहज स्वीकार करना होगा । फिर बादल, मुलायम, संगमा, करुणानीधि, लालू, पासवान आदि तो अपने बच्चों और परिवारी जनों को भारतीय राजनीति की पूरी ट्रेनिंग भी दे रहे है अतः इनकी योग्यता तो निर्विवाद रूप से स्वीकार की जानी चाहिए। जिस तरह इंदिरा की मृत्यु की सहानुभूति में राजीव प्रधानमंत्री बने, राजीव की, मृत्यु के बाद कॉग्रेस ने सोनिया के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और सोनिया के त्याग की सहानुभूति में राहुल की नैया पार लगाने की कोशिश हो रही है, आप का यह निर्णय कुछ ऐसी ही सहनुभूति की उम्मीद नही कर रहा है ? अन्तर बस इतना है कि कॉग्रेस की कोशिश एक सवा सौ साल पुरानी पार्टी में खास बन चुके परिवार के लिए है और यहॉ नौ महीने पहले जन्म लेने वाली पार्टी के खास कार्यकर्ता के परिवार के लिए । इतनी कम उम्र में तो यह रोग कॉग्रेस को भी नही लगा था ।



दिल्ली -


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