शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

लाल किला वाली आजादी की दुकान

लाल किले से पिछले, 68 सालों से लगातार हर 15 अगस्त को कोई न कोई चीखते हुए आजादी बेचता है, ठीक वैसे ही जैसे सब्जी मंडी में कोई ठेले वाला अपना सड़ी सब्जी चीख -चीख कर बेचता है ..... जब कभी इस तथाकथित आजादी के बारे में सोचता हुँ ( यद्दपि दो वक्त की दाल-रोटी के जुगाड़ में आम भारतीय के जीवन में इस विषय पर सोचने के अवसर न के बराबर आते हैं ।) तो सामने क प्रश्नों की लम्बी कतार खड़ी होती है । कौन सी आजादी ? किसकी आजादी ? किससे आजादी ?????? ... जब भी बेचने वाले की चीखती आवाज सुनकर आजादी के ठेले की तरफ बढता हूँ तो दूर से ही इस आजादी से नस्लवाद की बू आती है । पहले गोरे मंडी के मालिक थे ,अब कुछ काले लोग वही काम कर रहे हैं और फिर इस आजादी से घिन आने लगती है .. ..... कभी -कभी सोचता हुँ कि "भारत माता की जै " बोलकर थोडा सा राष्ट्र -भक्त बन जाऊँ । सामने सूर्यसेन जोर -जोर से जै बोलते नजर आते है तो दूसरी तरफ सीमांत प्रांत से खान अब्दुल गफ्फार और कराची से लाला लाजपत यही जैकार लगा रहे है । उनके साथ मै भी जोर से उसी भारत माता की जैकार करने की सोचता हूँ, लेकिन तभी कछुए सी मेरी चेतना मुझे सावधान करती है कि अब उनकी भारत माता का रूप सियासतदानों ने बदल कर बंग्लादेश और पाकिस्तान कर दिया है और हमारी भारत माता लाल किले की आजादी वाली हैं ... उनके साथ जैकारा लगाया तो देशद्रोही कहे जाओगे ....फिर डर से राष्ट्र भक्ति का जुनून स्वतः ही दिमाग के किसी कोने में दफन हो गया ... हाँ इस बात का भरोसा अवश्य है की आगे भी लाल किले से हर साल कोई न कोई आजादी -आजादी चीखता रहेगा ....कभी तो जनता की आजादी लाल किले से बोलेगी ... दिल्ली 15 अगस्त 2014